परमात्मन् ! आप क्षमा करें
जो हम कुकर्म जाने-अनजाने में कर दें, उनके लिए प्रभु से दया की प्रार्थना अवश्य करें –
शान्तानि पूर्वरूपाणि शान्तं नो अस्तु कृताकृतम् ।
शान्तं भूतं च भव्यं च सर्वमेव शमस्तु नः ॥ अथर्ववेदः १९।९।२॥
ऋषिः – वसिष्ठः । देवता – बहुदैवत्यम् ।
हमारे कर्मों के पूर्वरूप, अर्थात् कर्म करने के संकल्प कल्याणकारी हों । हमने जो किया, और जो करने में चूक गए, वे दोनों शान्त हो जाएं (कृपया करके, प्रभो ! आप हमें क्षमा करें) । जो अतीत में किए कर्मों के संस्कार हैं और जो भविष्य के कर्मों के बनेंगे, वे सब हमारे लिए कल्याणकारी हों । सब ही पदार्थ हमारे लिए सुख व शान्ति प्रदायक हों !
ईश्वर से दया की जैसे भीख मांगते हुए, इस मन्त्र में कुछ प्रायश्चित्त का भाव है तो कुछ प्रार्थना का भाव है । परमात्मा तो अनन्त दयालु हैं, तथापि वे अपने न्याय के धर्म में भी अटल हैं । फिर भी उनसे जो हम प्रार्थना करें, तो अवश्य वे उसको सुनकर हमारे दुःखों को कुछ तो सहनीय करते हैं और हमें आगे के कुकर्मों से बचाते हैं ।