परमात्मन् ! आप दर्शन कब देंगे?

बहुत समय तक परमात्मा की उपासना करने के बाद भी जब वे प्रकट नहीं होते, तो भक्ता विलाप करते हुए, परमात्मा से प्रश्न पूछ बैठती है –

उत स्वया तन्वा सं वदे तत्

कदा न्वन्तर्वरुणे भुवानि 

किं मे हव्यमहृणानो जुषेत

कदा मृळीकं सुमना अभि ख्यम् ॥ ऋग्वेदः ७।८६।२॥

ऋषिः – वसिष्ठः । देवता – वरुणः ।

हे वरणीय परमात्मन् ! क्या मैं अपने शरीर के माध्यम से ही आपसे संवाद करती रहूंगी ? कब वह समय आयेगा जब मैं आपके अन्दर समाऊंगी ? क्या क्रोध न करते हुए, प्रेम से, आप मेरा उपासना-रूपी उपहार स्वीकार करेंगे ? किस काल में आप आनन्दघन को मैं साक्षात् करके आनन्दित मन वाली कहलाऊंगी ?

बहुकाल तक तपस्या करने के बाद ही परमात्मा अपनी छवि का थोड़ा बोध कराते हैं । कभी-कभी भक्ता भी हतोत्साह होने लगती है कि मैं इतने दिनों से तो आप को पुकार रही हूं, पर आप हैं कि मुझे कुछ भी अपनी प्रतीति नहीं कराते ! कब आपका रोष टलेगा और कब मैं आप के आनन्द में स्नान करूंगी ? इस प्रकार प्रभु ने जनाया है कि सम्भव है कि तुम्हें मुझ तक पहुंचने में दीर्घ काल लगे, परन्तु तुम हताश मत होना – एक दिन मेरी कृपा तुमपर अवश्य होगी !