सब साथ मिलकर उन्नति करें

धर्म के मार्ग पर चलता हुआ पथिक कई विपदाओं का सामना करते हुए कई बार हताश हो जाता है । उसके लिए प्रभु कहते हैं –

उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः 

उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः ॥ ऋग्वेदः १०।१३७।१॥

ऋषिः – सप्त ऋषयः, एकर्चाः । देवता – विश्वेदेवाः ।

हे विद्वानों ! जो नीच हैं, जो गिर गए हैं, उनको आप पुनः उठा दीजिए । जो उन्होंने पाप किए हैं, उनको पुनः जीवन प्रदान करिये – उन पापों से छुड़ाइये ।

जहां एक ओर यहां नीच जन हम ही हैं, जो विद्वानों से मार्गदर्शन की प्रार्थना कर रहे हैं, वहां दूसरी ओर वे विद्वान् भी हम ही हैं जिनको गिर-गिर अपने को बार-बार सम्भालना है । जो हम गलत काम कर जाएं, उनको वेदादि के उपदेश जानकर, मनन-निधिध्यासन करके, अपने अन्दर से उन चेष्टाओं को निकालना है और नया जीवन प्राप्त करना है । हां, इसके लिए आवश्यक है कि हम पाप और पुण्य के बीच में विवेक कर सकें, क्योंकि जो इनमें भेद ही न जानें, तो मार्ग बदलने का क्यों सोचें ? इसीलिए कहा गया है कि ऋषियों के द्वारा लिखे ग्रन्थों और परमात्मा के द्वारा प्रदत्त वेदों का स्वाध्याय करते रहें, उनपर चिन्तन-मनन करते रहें, और उनके कथनानुसार अपने को दिन-प्रतिदिन शुद्ध करते जाएं ।