हमारी सफलता हमारे हाथ में है

वेद बताता है कि हमारी सर्वांगीण उन्नति हमारे ही हाथ में है –

स्वयं वाजिँस्तन्वं कल्पयस्व स्वयं यजस्व स्वयं जुषस्व 

महिमा तेऽन्येन न सन्नशे ॥ यजुर्वेदः २३।१५॥

ऋषिः – प्रजापतिः । देवता – विद्वान् ।

प्रजापति परमेश्वर विद्वान् प्रजा को विशेष सन्देश देते हैं – हे वाजिन् – शीघ्र ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा वाले ! तुम स्वयं अपने शरीर को समर्थ बनाओ, स्वयं (विद्वानों से) जुड़ो और स्वयं (उनके उपदेशों का) पालन करो । तब तुम्हारी महिमा को कोई नष्ट नहीं कर पाएगा ।

जो ज्ञान के प्यासे होते हैं, वे अनेक बार अपने शरीर को भूल जाते हैं और क्षीण होते हैं । फिर रुग्णावस्था आकर उनको घेर लेती है । इसलिए परमात्मा उपदेश देते हैं कि पहला सुख तो निरोगी काया का ही है, उसका ध्यान रखो । फिर अन्य विद्वानों का संग खोजो । उनके बताए मार्ग पर चलकर, तुम इतना कुछ प्राप्त कर लोगे कि फिर कोई तुम्हारे यश को चुरा नहीं सकेगा, न तुम और तुम्हारे लक्ष्य के बीच में आ पाएगा । इस प्रकार विशेषकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले को परमेश्वर दिशा दिखाते हैं और उस मार्ग का फल भी सूचित करते हैं ।